आप सभी ने बचपन में एक कहावत तो सुनी ही होगी की: ‘विज्ञानकेबिनामानवजीवनअधूराहै’ आज इसी विचारधारा पर आगे बढ़ते हुए कृषि क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिक इस स्तर पर पहुँच गए हैं कि अब फसलों को उगाने के लिए मृदा की भी आवश्यकता नहीं है,
इससे पहले हमने आपको बिना मिट्टी के एयरोपोनिक्स तकनीक से आलू उगाने की तकनीक के बारे में जानकारी उपलब्ध करवायी थी।
आज हम आपको बिना मृदा के केवल पानी के एक विलियन (Solution) से किसी भी फसल की छोटी पौध और सब्ज़ी उगाने के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे, जिसे जल संवर्धन या हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) तकनीक के नाम से जाना जाता है।
इसी दौरान उनके पास खाने की कमी हो गई थी, तो उन्होंने उसी टापू पर बिना मिट्टी के ही सब्ज़ी की छोटी पौध उगाने की शुरुआत कर अपने खाने की व्यवस्था की।
इस तकनीक में किसी भी फ़सल की छोटी पौध की जड़ों को ऑक्सीजन और कई मुख्य और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर पानी में डुबोकर रखा जाता है, इन्हीं पोषक तत्वों को ग्रहण कर यह पौधा वृद्धि करता है।
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इस तकनीक के इस्तेमाल का यह सबसे बड़ा फ़ायदा है। इसी वजह से भारत में पाई जाने वाली कुछ ऐसी जगहें, जहाँ की मृदा फसल उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं है, अब उन स्थानों पर भी अच्छी-ख़ासी खेती की जा रही है।
इस तकनीक के इस्तेमाल की वजह से फ़सल की वृद्धि दर को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है, क्योंकि फसल की पौध को दिए जाने वाले पानी के विलयन में पोषक तत्वों की मात्र आसानी से कम या अधिक की जा सकती है।
इसी वजह से सही समय पर वृद्धि दर को नाप कर पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाकर वृद्धि दर को भी बढ़ाया जा सकता है।
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक की मदद से फसल और सब्ज़ी की उपज को आसानी से बढ़ाया जा सकता है, इसके अलावा फसल की छोटी पौध में लगने वाले रोगों से भी आसानी से बचा जा सकता है।
केरल के एर्नाकूलम ज़िले में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का इस्तेमाल करने वाले किसान विजयराज बताते हैं कि पिछले दो वर्षों से इस तकनीक की मदद से उनकी वार्षिक उपज में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है और अब उर्वरकों पर होने वाले ख़र्चे में भी कमी देखने को मिली है।
इसके अलावा कीटनाशक और दूसरे प्रकार के रोगों के निदान में ख़र्च होने वाली लागत को भी बचाया जा रहा है।
कम बारिश और कम भूजल स्तर वाली जगहों पर पानी की उपलब्धता कम होती है, ऐसे स्थानों पर इस तकनीक का इस्तेमाल कर आसानी से बेहतर फसल उत्पादन किया जा सकता है।
पिछले 3 वर्षों से तमिलनाडु के मदुरई क्षेत्र में रहने वाले कुछ युवा किसान कम पानी के बावजूद भी बेहतर फसल उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
हालांकि ऊपर बताए गए फायदों के अलावा, हाइड्रोपोनिक तकनीक के इस्तेमाल से किसानों पर अधिक आर्थिक दबाव पड़ता है, क्योंकि इसके प्लांट को सेट अप करना काफी महंगा पड़ सकता है।इसके अलावा वर्तमान में कुछ युवा और डिजिटल तकनीक का ज्ञान रखने वाले किसान भाई ही इस विधि के प्रयोग में सफलता हासिल कर पाए हैं। इस तकनीक को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए हर समय इलेक्ट्रिसिटी (Electricity) की आवश्यकता होती है, जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसान भाइयों के लिए अभी संभव नहीं है।
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बेहतर प्रवाह के लिए इलेक्ट्रिक पंप तथा एयरस्टोन जैसे उपकरणों की आवश्यकता होती है। वर्तमान में हाइड्रोपोनिक तकनीक के लिए भारत में इस्तेमाल किए जा रहे 'सयंत्र' : वर्तमान में केरल और तमिलनाडु में रहने वाले भारतीय युवा किसान, हाइड्रोपोनिक तकनीक में इस्तेमाल आने वाले दो तरह के संयंत्रों का प्रयोग कर रहे हैं, जो कि निम्न प्रकार है :
हाइड्रोपोनिक संयंत्र में पानी से भरपूर पोषक तत्व का निरंतर प्रवाह किया जाता है और एक बार प्रवाहित होने के बाद पानी को वापस इलेक्ट्रिक पंप की सहायता से दोबारा से पाइप लाइन से गुजारा जाता है।
हाइड्रोपोनिक्स जनित पत्तेदार सब्जियां (Hydroponics with leafy vegetables. Source: Wiki; Author-Ryan Somma (रयान सोमा))[/caption]इस तकनीक की मदद से पौधे की जड़ों को आसानी से ऑक्सीजन और पानी की आपूर्ति की जाती है और पोषक तत्व का प्रबंधन भी बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
हाल ही में केरल के अर्नाकुलम और कोच्चि क्षेत्र के किसान भाई इस तकनीक की मदद से टमाटर उगाने में सफल हुए हैं।
इस प्रकार के संयंत्र की मदद से आसानी से फसल की अधिक मात्रा का उत्पादन किया जा सकता है और आसानी से बड़े प्लांट को सेटअप किया जा सकता है।
गहरे पानी में होने की वजह से तापमान का बेहतर नियंत्रण किया जा सकता है और इलेक्ट्रिक वाल्व की मदद से पानी के प्रभाव को भी कम या अधिक किया जा सकता है।
डीप वाटर कल्चर से लेट्यूस उत्पादन (Deep water culture (DWC) in lettuce production (Source:Wiki; Author -ArcadiYay))[/caption]आंध्र प्रदेश और केरल राज्य के तटीय इलाकों में रहने वाले कई किसान भाई इस संयंत्र की मदद से अच्छा खासा उत्पादन कर पा रहे हैं।
वर्तमान में हाइड्रोपोनिक तकनीक की मदद से टमाटर, कुकुंबर और स्ट्रॉबेरी तथा कई आयुर्वेदिक उत्पाद प्राप्त किए जा रहे हैं। इस तकनीक के इस्तेमाल में प्रत्येक फसल के लिए अलग तरह के पोषक तत्वों का प्रयोग करना पड़ता है।वर्तमान में कृषि क्षेत्र से जुड़ी कई भारतीय स्टार्टअप कम्पनियाँ और अंतरराष्ट्रीय कंपनियां हाइड्रोपोनिक तकनीक के लिए इस्तेमाल आने वाले पोषक तत्वों को बाजार में उपलब्ध करवा रही है।
आशा करते हैं कि किसान भाइयों को बिना मृदा के फसल उत्पादन करने की इस नई 'हाइड्रोपोनिक तकनीक' के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। यदि आपके क्षेत्र में पाई जाने वाली मर्दा की उर्वरा शक्ति कमजोर है तो इस तकनीक का इस्तेमाल कर बेहतर वैज्ञानिक विधि से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।